Chup vs Brahmastra Collection Day 2: सनी देओल की 'चुप' ने 'ब्रह्मास्त्र' के सामने मचाया शोर, दूसरे दिन भी कमाए इतने करोड़
Chup Box Office Collection Day
2 सनी देओल ने पिछले 10 सालों से एक भी हिट फिल्म नहीं दी है। उन्हें एक के बाद लगातार 12 फ्लॉप फिल्मों से फैंस को निराश किया। अब सारे उम्मीदें हालिया रिलीज चुप पर टिकी हुई हैं।
Chup Box Office Collection Day 2: सनी देओल और दुलकर सलमान की फिल्म चुप ने पहले दिन ऊंची दहाड़ लगाई थी। फिल्म को राष्ट्रीय सिनेमा दिवस पर घटी दरों का फायदा हुआ था और यह करीब 3 करोड़ के आसपास का बिजनेस करने में कामयाब रही। माना जा रहा था कि शनिवार को चुप की कमाई बढ़ेगी पर पर यह गलत साबित हुआ रिलीज के दूसरे दिन फिल्म का कलेक्शन 40 प्रतिशत से भी ज्यादा घटा।
सनी देओल पिछले 10 सालों से लगातार फ्लॉप फिल्में दे रहे हैं। अगर आंकड़ों पर गौर किया जाए तो सनी ने एक के बाद एक 12 फ्लॉप फिल्में दी हैं। आखिरी बार उन्हें 2019 में फिल्म ब्लैक में देखा गया था। इस फिल्म का नाम भी कम ही लोगों को याद है। अब 'चुप' का हाल भी बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास अच्छा नहीं है। फिल्म वीकेंड पर दूसरे दिन ही ढाहती नजर आ रही है। वहीं ब्रह्मास्त्र अपने तीसरे हफ्ते में भी मजबूती से टिकी हुई है। दूसरे दिन कमाए इतने करोड़
'चुप' ने दूसरे दिन शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ 1.70 करोड़ का बिजनेस किया है। फिल्म की कमाई में 40 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट देखी दर्ज की गई है। अब यह देखना दिलचस्प होगा की रविवार को फिल्म कैसा परफॉर्म करती हैं क्योंकि सोमवार से तो फिर फिल्म का कलेक्शन घटना ही है। दूसरा, इसकी सीधी टक्कर रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की 'ब्रह्मास्त्र' से है। हालांकि 28 करोड़ के बजट में बनीं चुप के लिए अभी तो लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा है।
23 सितंबर को देश के करीब 800 सिनेमा स्क्रीन्स पर रिलीज हुई चुप एक साइकोलॉजिकल क्राइम थ्रिलर फिल्म है, जिसमें उन लोगों का खून होता है जो फिल्म को खराब रेटिंग देते हैं और खुद को फिल्म क्रिटिक बताते हैं। फिल्म को रिव्यू भी अच्छे मिले और रिलीज के लिए लोगों ने टिकटों के रेट मात्र 75 रुपये होने के चलते इसे जमकर देखा भी। दूसरे दिन जैसे ही टिकटों रेट सामान्य हुए ये बॉक्स ऑफिस पर धड़ाम हो गई।
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गुरुदत्त निर्देशित आखिरी फिल्म ‘कागज के फूल’ (1959) नहीं चली तो क्या इसमें उस दौर में लिखी गईं फिल्म समीक्षाओं का हाथ रहा होगा? और, क्या वाकई सिर्फ अपनी फिल्मों की आलोचनाओं से अवसादग्रस्त होकर गुरुदत्त ने कथित आत्महत्या कर ली होगी? लेकिन फिल्म ‘कागज के फूल’ के बाद तो गुरुदत्त ने कम से कम नौ फिल्मों में और काम किया और इनमें से तीन फिल्मों ‘चौदवीं का चांद’, ‘साहब बीवी औऱ गुलाम’ व ‘बहारें फिर भी आएंगी’ के तो वह निर्माता भी रहे। क्या अपनी एक फिल्म की समीक्षाओं से परेशान कोई निर्देशक व अभिनेता ऐसा कर भी सकता है। ‘कागज के फूल’ के बाद बनाई उनकी फिल्मों ने पैसा भी खूब कमाया। परदे पर फिल्म ‘चुप’ चल रही है। और, दिमाग में ये सारे सवाल भंवर की तरह मंडरा रहे हैं। फिल्म ‘चुप’ की मानें तो गुरुदत्त को उस दौर के समीक्षकों की समीक्षाओं ने मार डाला। उनका शागिर्द तभी तो अपने दौर के समीक्षकों को मारने निकला है। जिस सीट पर बैठे मैं ये फिल्म देख रहा हूं, उसकी ठीक पीछे की तीसरी कतार में वहीदा रहमान बैठी हैं। गुरुदत्त की कहानी जाननी हो तो उनसे बेहतर भला और कौन बता सकता है? लेकिन, पता नहीं फिल्म ‘चुप’ के निर्देशक आर बाल्की अपनी इस फिल्म पर शोध के लिए उनसे मिले भी कि नहीं, कम से कम उनकी फिल्म को देखकर तो नहीं लगता। मिले होते तो उन्हें ये जरूर पता होता कि ‘कागज के फूल’ गुरुदत्त की आखिरी फिल्म नहीं है।
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