राजस्थान के लोकगीत एवं लोक नृत्य भाग -2 Rajasthan Ke Lokgeet v Nrtay Question In Hindi - Best || RAJASTHAN LAB ASSISSTANT 2022 #RAJ_GK
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राजस्थान के लोकगीत एवं लोक नृत्य - Rajasthan Ke Lokgeet & Nrtay
लोकगीतों की दृष्टि से समर्थ प्रदेश राजस्थान में लोगों का उल्लास प्रेम करुणा सुख-दुख इत्यादि की व्यंजना लोकगीतों के माध्यम से प्रतिबिंबित है लोकगीत सहज रूप से कंठ से निकली अभिव्यक्ति है जिस की स्वर लहरियां पग-पग पर प्रवाहित होती है लोकगीतों की मुख्य विशेषता यह होती है कि इसका रचयिता व्यक्ति विशेष ने होकर संपूर्ण समाज होता है तथा इसमें स्थान परिवर्तन के साथ ही परिवर्तन देखने को मिलता है
इससे पहले की पोस्ट में आप सभी ने पढ़ा राजस्थान के सभी लोक संगीत अब आगे हम पढ़ेंगे राजस्थान के सभी लोक नृत्य :-
राजस्थान के प्रमुख लोक नृत्य
घूमर
राजस्थान की संस्कृति का पहचान घूमर नृत्य राजस्थान के लोक नृत्य की आत्मा कहलाता है यह नृत्य सभी मांगलिक अवसरों पर राज्य के अधिकांश भागों विशेषकर जयपुर मारवाड़ क्षेत्र में किया जाता है घुमर शब्द की उत्पत्ति घूम से हुई है जिसका अर्थ होता है लहंगे का घेर घूमर में महिलाएं घेरा बनाकर घूमर लोकगीत की धुन पर नाचती है
ढोल नृत्य
राजस्थान के जालौर क्षेत्र में शादी के अवसर पर पुरुषों द्वारा किया जाने वाला सामूहिक नृत्य जिसमें नर्तक विविध कला बाजियां दिखाते हैं यह नृत्य डोली सरगरा माली भील आदि जातियों द्वारा किया जाता है इस नृत्य में कई ढोल एवं थालिया एक साथ बदल जाते हैं ढोल वादकों का मुखिया थाकना शैली में ढोल बजाना प्रारंभ करता है
गीदड़ नृत्य
शेखावाटी क्षेत्र का सबसे लोकप्रिय एवं बहु प्रचलित लोक नृत्य जो होली से पूर्व डांडा रोपण से प्रारंभ होकर होली के बाद तक चलता है गीदड़ नाचने वालों को गीदड़यिया तथा स्त्रियों का स्वांग करने वालों को गणगौर कहा जाता है नृत्य विभिन्न प्रकार के स्वांग करते हैं जिसमें सेठ सेठानी दूल्हा-दुल्हन डाकिया डाकन पठान सरदार के स्वांग प्रमुख है
अग्नि नृत्य
बीकानेर के जसनाथी सिद्ध द्वारा फते फते के उद्घोष के साथ अंगारों पर किया जाने वाला यह नृत्य दर्शकों को रोमांचित कर देता है यह नृत्य फाल्गुन क्षेत्र के महीनों में इस अवसर पर नगाड़ा बजता है और नर्तक मतीरा फोड़ना हल जोतना आदि क्रियाये दर्शाता है
गैर नृत्य
भीलों के गैर नृत्य के अलावा राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र विशेषकर बाड़मेर जालौर पाली जिले में होली के अवसर पर पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य जिसमें पुरुष एक गोल घेरे में डांडिया मिलाते हुए नाचते हैं यह दो प्रकार का होता है एक बड़ा ढाका एवं बेवड़ा ढाका
कनाना बाड़मेर का गेर नृत्य प्रसिद्ध है जालौर जिले के बड़ा बिजली क्षेत्र के कलाकार कई बार नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड में इस नृत्य का प्रदर्शन कर चुके हैं
भवाई
यह राजस्थान का सबसे महत्वपूर्ण व्यवसायिक लोक नृत्य है जो मेवाड़ की क्षेत्र की भवाई जाति द्वारा किया जाता है इस नृत्य में नर्तक द्वारा सिर पर बहुत से घड़े रखकर विविध मनोरंजक एवं रोमांचक क्रियाये की जाती है भवाई में बोरा बोरी सूरदास शंकरिया ढोला मारू इत्यादि प प्रसंग होते हैं
तेरहताली
पाली नागौर जैसलमेर जिले की कामड जाति कि विवाहित महिलाओं द्वारा रामदेव जी के मेले में किया जाने वाला धार्मिक चितरंजन लोकनृत्य जिसमें नृत्यांगना दाएं हाथ की कोहनी के एक एक मंजीरा बांधकर तथा दो मंजीरे हाथों में रखकर कुल 13 मंजीरे परस्पर टकराते हुए विभिन्न ध्वनि उत्पन्न करती है पुरुष पृष्ठभूमि में तंबूरा ढोलक इत्यादि वाद्य बजाते हुए संगत करते हैं इस नृत्य में का उद्गम पाली जिले की पादरला गांव माना जाता है कामड जाति की विवाहित महिलाएं ही इस नृत्य को कर सकती है
कच्छी घोड़ी
शेखावाटी क्षेत्र एवं नागौर जिले के पूर्वी भाग में अधिक प्रचलित है नृत्य पेशेवर जातियों द्वारा मांगलिक अवसरों उत्सव पर किया जाता है इसमें बांस की घोड़ी को अपनी कमर में बांध कर रंग-बिरंगे परिधान में आकर्षक नृत्य करता है तथा वीर रस के दोहे बोलता रहता है कच्छी घोड़ी नृत्य के साथ में ढोल बाकिया ताली बजती है नित्य के साथ रसाला रंग भरिया बिंद एवं लसकरिया गीत गाए जाते हैं
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